क्या कहीं अंदरखाने समझौते की चाय बन चुकी है
मनीष गुप्ता, कानपुर।
बिधनू सीएचसी का ₹25,000 वसूली कांड अब सिर्फ विभागीय मामला नहीं रहा — अब ये सवाल बन गया है कि “किसका जवाब तीन दिन में आना था, और आठ दिन बाद भी क्यों नहीं आया?”
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय की ओर से जारी नोटिस में साफ लिखा गया था —
“तीन कार्य दिवसों में स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें।”
लेकिन जब पत्रकार ने इस पर अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. यू. बी. सिंह से बात की, तो उन्होंने बताया —
> “बिधनू सीएचसी अधिकारी ने 7 दिन का समय मांगा था।”
अब 8 दिन बीत चुके हैं, न जवाब आया, न कार्रवाई।
इस चुप्पी ने पूरे स्वास्थ्य विभाग में हलचल मचा दी है —
क्या तीन दिन की सख्ती, सात दिन में नरमी में बदल गई?
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जवाब गायब या जुगाड़ हाज़िर?
विभागीय सूत्रों का कहना है कि फाइलें अब सील नहीं, “ठंडी” रख दी गई हैं।
जिन पर कार्रवाई की बात थी, वे अब फोन नहीं उठा रहे — और जिनसे पूछताछ होनी थी, वे “मुलाक़ात में व्यस्त” बताए जा रहे हैं।
अंदरखाने में चर्चा ये भी है कि “डील हो गई है… गुपचुप तरीके से।”
क्योंकि अगर मामला पारदर्शी होता तो आठ दिन बाद भी जवाब का इंतज़ार क्यों?
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तीन दिन की नोटिस, आठ दिन की खामोशी
पत्र की कॉपी जिलाधिकारी और मंडल निदेशक को भेजी जा चुकी है, लेकिन वहां से भी कोई स्पष्ट अपडेट नहीं आया।
अब जनता पूछ रही है —
> “अगर वसूली नहीं हुई, तो जवाब क्यों नहीं दिया गया?”
“और अगर सब कुछ सही है, तो फाइलें ठंडी क्यों पड़ी हैं?”
जांच या जुगाड़ — जवाब किसका आएगा?
डॉ. यू. बी. सिंह की सख्ती अब विभाग में सवालों के घेरे में है।
पहले “तीन दिन” कहने वाले अब “सात दिन” बताते हैं —
यानी कहीं न कहीं ‘गणित’ बदल गया है।
सूत्रों की मानें तो अब यह मामला जांच से ज़्यादा “जुगाड़” के मोड में चला गया है।
अब सबकी निगाहें इसी पर टिकी हैं —
क्या सच सामने आएगा,
या फिर यह मामला भी ‘सम्मान के भाव’ में निपट जाएगा? 😏