जुहारी देवी गर्ल्स पीजी कॉलेज में ‘युवा चेतना और गीता’ विषय पर हुआ भव्य आयोजन

कानपुर। जुहारी देवी गर्ल्स पीजी कॉलेज के संस्कृत विभाग एवं गीता पीठ, छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को “युवा चेतना और गीता” विषय पर एक बृहद् स्तर का कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह आयोजन भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और गीता के आदर्शों को युवाओं के जीवन में उतारने के उद्देश्य से किया गया था।

कार्यक्रम का शुभारंभ कार्तिक मास के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए तुलसी पौधे पर तिलक एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इसके उपरांत मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई, जिसकी संगीतमय प्रस्तुति डॉ. मोहिनी शुक्ला के निर्देशन में छात्राओं ने दी। पूरे वातावरण में वैदिक शांति और सांस्कृतिक सौहार्द का भाव व्याप्त हो गया।

सभी अतिथियों का स्वागत पुष्पस्तवक, प्रतीक चिन्ह और उत्तरीय पहनाकर किया गया। कॉलेज की प्राचार्या प्रो. रंजू कुशवाहा ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि गीता जीवन का वह शाश्वत ग्रंथ है जो व्यक्ति को धर्म, ज्ञान और कर्म के वास्तविक स्वरूप की शिक्षा देता है। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के लिए यह आवश्यक है कि बचपन से ही गीता के सिद्धांतों को आत्मसात किया जाए ताकि वे नैतिक और मानसिक रूप से सशक्त बन सकें।

कार्यक्रम संयोजिका प्रो. शालिनी अग्रवाल ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि आज का युवा दिशा तो खोज रहा है, परंतु प्रेरणा स्रोतों से दूर होता जा रहा है। गीता अध्ययन न केवल जीवन के प्रति संतुलन सिखाता है, बल्कि यह हमें आंतरिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा से भी जोड़ता है। उन्होंने कहा कि गीता की शिक्षाएँ आज के प्रतिस्पर्धी युग में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं।

विशिष्ट अतिथि प्रो. प्रदीप कुमार दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि आज का युवा वर्ग परिणाम की अपेक्षा में कर्म से विमुख हो रहा है। उन्होंने गीता के श्लोक “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य को केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यही जीवन की सच्ची साधना है।

मुख्य अतिथि प्रो. राजेश कुमार द्विवेदी ने गीता को भारतीय संस्कृति की आधारशिला बताते हुए कहा कि यह केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन देने वाली अद्भुत दार्शनिक धरोहर है। उन्होंने कहा कि जब युवा गीता के सिद्धांतों को समझेगा, तो समाज में अनुशासन, संवेदना और जिम्मेदारी का भाव स्वतः विकसित होगा।

मुख्य वक्ता आईआईटी कानपुर के प्रो. डी.पी. मिश्रा ने अपने विस्तृत वक्तव्य में कहा कि गीता मनुष्य के समस्त मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक द्वंद्वों का समाधान प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में जब तनाव, असंतुलन और नैतिक द्वंद्व बढ़ रहे हैं, तब गीता का अध्ययन युवाओं के लिए मानसिक शांति और निर्णय क्षमता का सबसे बड़ा साधन बन सकता है।

गीता शोध पीठ के समन्वयक डॉ. अनिल गुप्ता ने शोध पीठ की कार्यप्रणाली, चल रहे प्रोजेक्ट और युवाओं को गीता शोध से जोड़ने के प्रयासों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि गीता का अध्ययन केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि आत्म-बोध की प्रक्रिया है जो समाज के विकास से सीधे जुड़ी है।

कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. सारिका अवस्थी ने किया। उन्होंने अपने कुशल संचालन से कार्यक्रम के क्रम को प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ाया। समापन सत्र में प्रो. शालिनी अग्रवाल ने सभी अतिथियों, शिक्षकों और छात्राओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।

इस अवसर पर कॉलेज की शिक्षिकाएँ प्रो. सुनीता द्विवेदी, प्रो. अल्पना राय, प्रो. अर्चना दीक्षित, प्रो. अलका द्विवेदी, डॉ. कशिश, डॉ. शालिनी यादव, डॉ. पूनम और डॉ. प्रतिभा यादव सहित समस्त शिक्षण एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारी उपस्थित रहे। छात्राओं ने भी उत्साहपूर्वक भागीदारी निभाई। कुल मिलाकर लगभग 60 छात्राओं ने कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता कर गीता के सिद्धांतों को अपनाने का संकल्प लिया।

कार्यक्रम के दौरान पूरा परिसर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ऊर्जा से सराबोर रहा। गीता के श्लोकों की गूंज और युवाओं में उत्पन्न उत्साह ने इस आयोजन को न केवल शैक्षणिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत सफल बना दिया।

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