कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल – 23 दिसंबर (पहला दिन)
कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पहले दिन का आगाज आर डी बर्मन की संगीत यात्रा पर बनी फिल्म पंचम अनमिक्स्ड फिल्म से हुआ। फिल्म के डायरेक्टर ब्रह्मानन्द एस सिंह भी मौजूद रहे । उनसे फिल्म के बारे में डाक्टर आलोक बाजपेयी ने बात की । उन्होंने इस फिल्म को बनाने का ख्याल उनके मन में कैसे आया और इसकी निर्माण प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया. ब्रह्मानन्द एस सिंह फिल्म निर्माण में जाना माना नाम हैं उन्हें अपनी फिल्मों के लिए कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। अक्सर हम क्रिएटिव लोगो के काम देखते हैं लेकिन ये स्टोरीज कहां से आती हैं ये भी देखना चाहिए । इस फिल्म में आर डी की लाइफ के सारे पहलू दिखाए गए हैं। वो जब सफलता के शिखर पर थे और जब वो अकेले पड़ गए थे। आज तीस साल उनको गुजरे हुए हो गए लेकिन आज भी वो उतने ही याद किए जाते हैं। उनके गाने सबसे ज्यादा रिमिक्स होने वाले गाने हैं।
फिल्म के बाद कानपुर लिटरेचर फेस्टिवल का उद्घाटन हुआ. उद्घाटन में फेस्टिवल डायरेक्टर अंजली तिवारी ने सभी लोगो के सहयोग के साथ शहर के लोगो को फेस्टिवल को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया. उन्होने कहा कि फेस्टिवल घुटनों के बल चलने की बजाय अब पैरों पर खड़ा हो रहा है. उद्घाटन के दौरान पल्लव बागला, सईद नकवी, अतुल तिवारी, आनंद्वीर सिंह, राहुल गोयल, आलोक बाजपेई, डॉ पालीवाल, ब्रह्मानंद सिंह, कलापिनी कोमकली मौजूद थे.
दूसरा सत्र था हिन्दी के अनोखे हस्ताक्षर, जिसमें मुंबई से आए कवि हूबनाथ पांडे से जाने-माने कवि पंकज चतुर्वेदी ने बात की. इस चर्चा के दौरान कविता एवं रचना प्रक्रिया के कई आयाम खुलकर सामने ई और दर्शकों ने यह समझा कि यह क्षेत्र कितनी गंभीरता की माँग करता है। जहाँ चरम निराशा आती है कविता वहीं जन्म लेती है। उन्होंने कहा कि जिन नेताओं ने संघर्ष किया उनका कद पड़ा। चाहे वे गाँधी हो या नेहरू जी। प्रकृति के संरक्षण पर भी हूबनाथ सिंह जी ने विकास की धुरी में मिटते पर्यावरण की भयावह स्थिति का वर्णन किया।
तीसरा सत्र – इसरो स्टोरी इंडिया ऑन द मून था . इसमें प्रसिद्ध साइन्स जर्नलिस्ट पल्लव बागला ने बातकी। उन्होंने भारत और अमरीकी स्पेस तकनीकी पर प्रकाश डाला उर उनकी तुलना व आलोचना की. इस दौरान उन्होंने कुछ छोटी छोटी फ़िल्में भी दिखाई.
चौथा सत्र —कालजयी था जिसमें पंडित कुमार गंधर्व के शताब्दी वर्ष के अवसर पर उनकी बेटी कलपिनी कोमकली ने अपने पिता की यादें लोगों के साथ बांटी। उनसे ने दिलचस्प बात की। अपने पुता के जीवन को कलापिनी जी ने बेहद स्नेह और कोमलता के साथ याद किया और इसमें कुमार गंधर्व जी के जीवन की साधना व तपस्या की झलक मिली. इस तरह के परफ़ॉरमेंस को लेकडेम (LECDEM – लेक्चर cum demonstration) कहा जाता है.
चौथे सत्र के बाद कानपुर के कलमकार के अंतर्गत शहर के जाने-माने साहित्यकार अमरीक सिंह दीप का सम्मान किया गया। दीप जी का परिचय देते हुये लेखिका अनीता मिश्रा ने बताया की अमरीक सिंह दीप का साहित्य ना सिर्फ मजदूरों वंचितों की वेदना को हमारे समक्ष रखता है बल्कि स्त्री विमर्श, खासकर निम्न मध्य वर्ग की स्त्री की बात भी करता है। उन्होने 84 में तमाम तकलीफ़ों के बाद भी शहर को नहीं छोड़ा । अमरीक सिंह दीप ने अपने वक्तव्य में सम्मान के लिए कानपुर लिट्रेचर सोसाइटी को धन्यवाद देते हुये कहा की जितना प्रेम उन्होने शहर से किया उतना ही शहर ने भी उनसे किया है। उनकी रचनाओं को खाद -पानी इसी शहर से मिला है । एक फैक्ट्री के कामगार से शुरू हुआ सफर एक लेखक के रूप में आज तक जारी है । अमरीक सिंह दीप का सम्मान मुंबई से आए हिन्दी कवि हूबनाथ ने किया ।
पहले दिन का अंतिम सत्र बहुत ही दिलचस्प था जिसका नाम था साग मीट। प्रसिद्ध लेखक भीष्म साहनी की कहानी पर आधारित इसे नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जानी-मानी अदाकारा सीमा भार्गव पाहवा ने। अभिनय के साथ ही उन्होने ही इसका निर्देशन भी किया है।