माननीयियों की नज़र में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस की अहमियत क्या ? विधायक चेयरमैन तो दूर की बात सभासद भी साइकिल को नहीं लगाते हाथ! फोटो खिंचवाने तक सीमित रहता चुनाव चिन्ह साइकिल से पार्टीजनों का प्यार! लग्जरी वाहनों में रहते सवार, गरीब जनता पर राजा-महाराजा की तरह करते राज!
राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस 2 दिसम्बर को भोपाल गैस जामादी के लिए याद किया जाता है और बहुते प्रदूषण से होने वाली समस्या के प्रति लोगों को जागरुक करने का काम भी किया जाता है। लेकिन हम आप देखते हैं कि बढ्ती वाहनों की संख्या से निकलने वाले जहरीले पुंजा से वायु कितनी प्रदूषित हो रही है। जो हम सबके स्वास्थ्य के लिए बेहद खतलाक है। फिर भी हम सथ वाहनों का प्रयोग कम करने के बजाय और बढ़ाते जा रहे हैं। जिससे साइकिल काचत्तन भीरे भीरे कम होता जा रहा है।जात साइकिल के प्रयोग की आये
और समाजवादी पार्टी का जिक्र
के लिए साइकिल का प्रयोग
नहीं तो यह समाजवादी पार्टी के संथ अन्याय ही होगा। क्योंकि इवालों साकिल के सहारे समाजवादी पार्टी प्रदेश की सभा में विराजमान तेकर मत्त सुख भोग चुकी है और आज भी विपक्ष में सबसे बड़े दल केसाप में है। अब सवाल यह उठता है कि क्य अपने को गरीबों और साकिल वालों की पार्टी कहने चाली सिपासी पार्टी का कर्तव्य ना ही है कि सपाइयों का प्यार सिर्फ और सिर्फ चुनाव चिना के रूप में या चुनाव के दौरान बोरसे को लुभाने के लिए ही साइकिल के साथ फोटो खिंचवाना मात्र है और माननीय बनने के बाद भूल जाना। यदि ऐक नहीं है तो सपाई
करते हैं या साइकिल से चलने
के साथ साइकिल में चलकर उन्हें उनका सेवक होने का एहसास कराते हैं ? शायद नहीं, क्योंकि अधिकतर माननीय है यहां भी लग्जरी वाहनों में ही सवार दिखते हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि साइकिल चुराय चिन्ह पर वोट हासिल कर माननीय बनने वालों को साइकिल से कितना लगाम है? प्रदूषण नियन्त्रण के प्रति उनको क्या जिम्मेदारी है ? इसको भी समझना होगा। क्योंकि चुनाव के बिना शायद समाजवादी पार्टी का कोई विधायक या पेपरमैन साइकिल की सवारी करता हो। साराह में किनने दिन जनता को मिधायक व चेयरमैन की बात
प्रदूषण के प्रति जागरुक करने तो दूर की है, साइकिल को तो
लगाते होंगे। अब सवाल यह उता है कि सभी माननीषियों की नजर में राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस की क्या अहमियत है और यह माताबरण को प्रदूषणमुक्त रखने के लिए साइकिल का प्रयोग क्यों नहीं करते हैं तो मामला आइना की तरह साफ हो जाता है कि जन किल पर चढ़कर सत्ता हासिल करने वाले ही साइकिल को गरीयों का साधन समझते हैं तो फिर दूसरे दल तो इससे यूं भी परहेज कर सकते हैं कि यह साइकिल सपा
वेरावल (सोमनाथ), गुजरात के लिए प्रस्थान…!
शायद सभासद तक भी हाथ नहीं का कुरा हि है। कुल मिलाकर
तस्वीर और साफ हो जाती है कि अज समाज में सबसे बड़ा गरी है जो संविहीन है, पैदल चल रहा है, साइकिल से चल रहा है, जिसके इस बाइक कार नहीं है। हाँ में कुछ हैं तो मतदाता अवश्य हैं, जिनकी कद्र चुनाव तक ही रहती है। अब इसे मादाताओं को हैं समझना होगा। अन्यथा सियासतदा तो बोटरों को लुभाकर राजा महाराजा की तरह ही गरेन जनता पर राज करते आ रहे हैं और शायद आगे भी राज करते रहेंगे।