दुकानदार अधिक कमाई के चक्कर में खिलाते मिलावटी खाद्य पदार्थ

दुकानदार अधिक कमाई के चक्कर में खिलाते मिलावटी खाद्य पदार्थ आम लोगो के स्वास्थ्य से हो रहा खिलवाड़
लखनऊ/कानपुर/फतेहपुर। देखा जाये तो हर उत्पादक कहीं न कहीं उपभोक्ता भी है। उत्पादक के रूप में व्यक्ति को आय होती है और उपभोक्ता के रूप में वह खर्च करता है। लेकिन व्यक्ति जब उत्पादक होता है तो उपभोक्ता को भूल जाता है। पूरा फोकस अधिक आय अर्जित करने पर होता है। शायद इसीलिए समाज में उपभोक्ता के रूप में हर व्यक्ति का आर्थिक शोषण जारी है। जैसे होटल, ढाबा एवं रेस्टोरेन्ट में परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल खड़े होते रहते हैं। लोग कभी-कभी गुणवत्तापरक न होने पर पूरा का पूरा खाना छोड़ देते हैं और भुगतान करके चले आते हैं। खास बात यह है कि संचालक सबकुछ जानते हुए भी पूरा का पूरा भुगतान ले लेता है।लखनऊ के किशोर कुमार, भरत सिंह, नासिर हुसैन, कमल आदि का कहना रहा कि कुछ स्थानों को छोड़ दीजिए तो अधिकतर स्थानों पर संचालित होटल व रेस्टोरेन्ट के भोजन एवं खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता का कोई खास पैमाना बिल्कुल भी नहीं होता है। लोग अपना पेट भरते हैं। और संचालक अपनी जेबें भरते हघ । कहना रहा कि सबसे ज़्यादा ख़राब स्थिति तो रेलवे स्टेशन व बस स्टेशन के आस
पास की है। यहां तो गुणवत्ता की बात ही न करें, यात्री जल्दी में रहता है और स्वाद के आगे उसे ताजा बासी समझ ही नहीं आता है । वह केवल अपना पेट भरना जानता है उसके बाद
वह तो जब घर जाकर बीमार पड़ता है तो डाक्टर के पास जाने पर पता चलता है कि क्या नुकसान किया है ।कानपुर के गुलाब सिंह, ज्योति, सीमा, तरन्नुम, कमलेश कुमार, समीर आदि का कहना रहा कि रोड के किनारे स्थित ढाबों से लेकर रेस्टोरेन्ट एवं होटलों में मिलावटी सस्तों मसालों का प्रयोग भोजन बनाने में किया जाता है। अन्य खाद्य सामाग्री भी मिलावटी सस्ती प्रयोग की जाती है। इन स्थानों का खाना खाने के बाद लोगों को पेट सम्बन्धित दिक्कतें आती हैं और डॉक्टर की शरण में जाना पड़ता है। खाद्य विभाग कार्रवाई के नाम पर औपचारिकता करता है।
फतेहपुर के सुधीर, पवन सिंह,राजन, लालबहादुर, करन सिंह आदि का कहना रहा कि होटल, ढाबा व रेस्टोरेन्ट के भोजन व अन्य खाद्य पदार्थों में इतने चटपटे मसालों का प्रयोग किया जाता है कि मिलावट का पता खाते समय कम ही चल पाता है। स्वाद के चक्कर में हम सब स्वयं ही अपने स्वास्थ्य को खराब कर लेते हैं। कहना रहा कि हमें बाहर का खाना ही बन्द कर देना चाहिए और सरकार के स्लोगन करो योग और रहो निरोग पर अमल करना चाहिए।दुकानदार और उपभोक्ता दोनों को जागने की आवश्यकता होटल, ढाबा और रेस्टोरेन्ट संचालित करने वाले उत्पादक के रूप में अधिक आमदनी के चक्कर में रहते हैं और मिलावटी एवं ताजा, बासी सब बेचकर अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं। वह शायद यह भूल जाते हैं कि जब वह बाहर जाते हैं तो इसी सोच का शिकार होने पर उपभोक्ता के रूप में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं। लेकिन जागते नहीं हैं, जबकि सुधार के लिए सबको जागने की आवश्यकता है।

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