श्रीमद् भागवत कथा का चौथे दिन: बाल लीला की कथा का गहन विवरण

दिनांक: 8 अक्टूबर 2024
स्थान: निवास ठाकुर हरेंद्र सिंह, नगलाबिंदु, कबीस चौराहा, फतेहाबाद रोड, आगरा
आगरा। श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन, प्रसिद्ध कथा वाचक पं. शिवाकांत जी महाराज ने बाल लीला और राजा भरत की कथा का मार्मिक और गहन वर्णन किया। जिलाध्यक्ष भाजपा फ़िरोज़ाबाद उदय प्रताप सिंह , समाजसेवी गौरी शंकर सिकरवार , ब्लॉक प्रमुख समशाबाद गजेंद्र रघुवंशी ,डा शिवकुमार शर्मा जी आदि लोगो ने कथा स्थल पर पहुंचकर पं. शिवाकांत जी महाराज का आशीर्वाद लिया और कथा में हिस्सा लिया।
बाल लीला का महत्व: जीवन के संघर्षों में सरलता का भाव
कथा का पहला भाग भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं पर आधारित था। पं. शिवाकांत जी ने भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए बताया कि किस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटी-छोटी शरारतों और लीलाओं से गोकुलवासियों के दिलों में प्रेम और आनंद का संचार किया। उन्होंने इन लीलाओं के माध्यम से यह संदेश दिया कि जीवन में कितनी भी समस्याएं क्यों न हों, हमें उन्हें हल्के और सरलता से लेना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे बच्चे जीवन की समस्याओं को बिना चिंता के खेल-खेल में सुलझा लेते हैं।
जीवन का उदाहरण:
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, हम अक्सर छोटी-छोटी बातों को लेकर तनाव में आ जाते हैं। चाहे वह नौकरी का दबाव हो या घर की समस्याएं, हम जल्दी ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। भगवान की बाल लीलाओं से हम यह सीख सकते हैं कि जीवन को खेल की तरह जीना चाहिए। समस्याएं हर जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनका हल हमें सरलता, धैर्य और प्रेम से निकालना चाहिए।
राजा भरत की कथा: त्याग और संयम का प्रेरणादायक उदाहरण
इसके पश्चात पं. शिवाकांत जी ने राजा भरत की तपस्या और जीवन का वर्णन किया। राजा भरत, जो अपने राज्य और वैभव को छोड़कर वन में तपस्या करने चले गए थे, उनके जीवन ने यह संदेश दिया कि सांसारिक सुख-सुविधाओं से अधिक महत्वपूर्ण आत्मज्ञान और शांति है। उन्होंने अपनी कथा के माध्यम से समझाया कि कैसे राजा भरत ने अपनी सारी संपत्ति और वैभव का त्याग किया और अंत में मोक्ष प्राप्त किया।
जीवन का उदाहरण:
आज के समय में, हम अक्सर धन, पद और सम्मान के पीछे भागते हैं, यह सोचते हुए कि यही जीवन का उद्देश्य है। लेकिन राजा भरत की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन का असली उद्देश्य आत्मिक शांति और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति है। अगर हम अपने जीवन में त्याग और संयम को स्थान देते हैं, तो हम भी आंतरिक शांति और संतोष को प्राप्त कर सकते हैं।
समर्पण, त्याग और धैर्य का संदेश
चौथे दिन की कथा में पं. शिवाकांत जी ने बताया कि राजा भरत और भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से हमें यह सीखना चाहिए कि जीवन में धैर्य, संयम और त्याग का कितना महत्व है। हर व्यक्ति को अपनी यात्रा में इन गुणों को अपनाना चाहिए ताकि जीवन में सच्ची सफलता और शांति प्राप्त हो सके। कार्यक्रम का विशेष आकर्षण पं. शिवाकांत जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि बाल लीलाओं और राजा भरत की कथा हमें सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ आएं, हमें हमेशा प्रेम, भक्ति और धैर्य के साथ उनका सामना करना चाहिए। कथा के दौरान भक्तिमय भजनों और जयकारों ने पूरे माहौल को दिव्यता से भर दिया।
आयोजक ठाकुर हरेंद्र सिंह और सकला सिंह ने सभी श्रद्धालुओं और सहयोगियों का धन्यवाद किया और उन्हें आने वाले दिनों की कथाओं में भी शामिल होने का निमंत्रण दिया।
कथा का समय: प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक
विशाल भंडारा: 12 अक्टूबर 2024 (रुद्राभिषेक के बाद)

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