कानपुर।
“जस्ट फॉर एनवायरनमेंट” संगठन द्वारा आयोजित वेबिनार के दौरान, प्रख्यात विशेषज्ञों ने उन पूरक फसलों पर चर्चा की, जिनका उपयोग इथेनॉल के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। साथ ही उन तकनीकों पर भी चर्चा की गयी, जिन्हें इथेनॉल इकाइयों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अपनाया जा सकता है। वेबिनार का उद्घाटन मेसर्स कल्लपन अवाडे जवाहर एसएसके लिमिटेड, कोल्हापुर के प्रबंध निदेशक एम. . जोशी ने किया, जिन्होंने इथेनॉल उत्पादन बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीकों और मानक संचालन प्रक्रियाओं को अपनाने पर जोर दिया, ताकि सस्ती लागत पर इथेनॉल का उत्पादन किया जा सके।
प्रो. नरेंद्र मोहन, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान ने मक्का से इथेनॉल उत्पादन के लिए 1.5 जी तकनीक के बारे में चर्चा की, जिसके अपनाने से मक्के में उपलब्ध फाइबर का भी उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है। ऐसा करने से, इथेनॉल की उत्पादकता वर्तमान औसत 380 लीटर प्रति टन मक्के से बढ़कर 400 लीटर प्रति टन मक्का या उससे भी अधिक हो सकती है। साथ ही उद्योग के उप-उत्पाद यानी डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल्स (डीडीजीएस) की गुणवत्ता में प्रोटीन की वृद्धि के कारण महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है। यह उप-उत्पाद जो कच्चे माल की मात्रा का लगभग 20-25% है और मवेशियों के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है. इथेनॉल इकाइयों के लिए उनकी व्यवहार्यता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। प्रो. मोहन ने कहा कि प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि करके, इसे अधिक कीमत पर बेचा जाएगा, जिससे इकाइयों को अधिक राजस्व प्राप्त होगा। डॉ. एस वी पाटिल, पूर्व प्रोफेसर और प्रमुख (अल्कोहल प्रौद्योगिकी), वीएसआई, पुणे ने तीन अन्य संभावित फसलों, कसावा, चुकंदर और स्वीट सोरघम पर चर्चा की, जिन्हें अब जैव ईंधन फसल के रूप में माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमें गन्ना, चावल और मक्का से आगे देखना होगा और ऐसी अन्य फसलों की पहचान करनी होगी जो जलवायु के अनुकूल हों. जिन्हें सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता हो, जिनकी उत्पादकता अधिक हो और जो खाद्य बनाम ईंधन की बहस को आमंत्रित न करें। भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना के निदेशक डॉ. एचएस जाट ने इथेनॉल, पोल्ट्री और अन्य क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए मक्का के लिए विजन 2047 का विवरण देते हुए विभिन्न मक्का संकरों की जानकारी दी, जिन्हें मक्का की उत्पादकता को मौजूदा 3.6 टन/हेक्टेयर से बढ़ाकर लगभग 5.0 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर करने के लिए विकसित किया जा रहा है।
मेसर्स कैटालिस्ट बायोटेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के उपाध्यक्ष और प्रमुख (आरएंडडी) डॉ. केवीटीएस पवन कुमार ने मक्का से इथेनॉल उत्पादन के विभिन्न चरणों में दक्षता बढ़ाने और एफ्लाटॉक्सिन के स्तर को 20 पीपीबी की निर्धारित सीमा से काफी नीचे रखकर डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल्स (डीडीजीएस) की गुणवत्ता में सुधार के लिए उठाए जाने वाले उपायों के बारे में बताया। मेसर्स ग्लोबल केन शुगर सर्विसेज के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ. जीएससी राव ने “नेपियर घास” से इथेनॉल बनाने के लिए तकनीकी विवरण प्रस्तुत किया, जिसे “हाथी घास” के रूप में भी जाना जाता है। इस घास की खेती सीमांत भूमि पर की जा सकती है, इसे कम सिंचाई जल की आवश्यकता होती है और यह कार्बन न्यूट्रल है, जिसे वर्ष में 5-6 बार काटा जा सकता है, तथा प्रति वर्ष प्रति एकड़ 150 मीट्रिक टन की प्रभावशाली उपज देता है, और इस प्रकार यह जैव ईंधन के उत्पादन के लिए उच्च उपज देने वाला संसाधन हो सकता है. श्रीमती अनुष्का कनोडिया ने सत्र का संचालन किया और धन्यवाद ज्ञापन दिया।