पेट्रोल के वैकल्पिक स्त्रोतों यथा-इथेनाल आदि की उपलब्धता बढाने, जैव ईंधन के उत्पादन पर जोर देने जैसे कई महत्वपूर्ण कार्य योजनाएं होगी तैयार
कानपुर-राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर ने 15 जून, 2024 को राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर में एक अति महत्वपूर्ण एवं समसामयिक विषय “जैव ईंधन के लिये उत्कृष्टता केंद्र” (सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर बायो फ्यूल्स) के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये “समझौता ज्ञापन” पर हस्ताक्षर अश्वनी श्रीवास्तव संयुक्त सचिव (शर्करा), भारत सरकार, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, निदेशक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर एवं प्रोफेसर सीमा परोहा, निदेशक राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर की गरिमामई उपस्थिति में संपन्न हुए इस अवसर पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के प्रोफेसर राजीव जिंदल, प्रोफेसर देबोपम दास तथा राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर के विनय कुमार, अनूप कुमार कनौजिया एवं डॉ. आर. अनंत लक्ष्मी उपस्थित रहे
“समझौता ज्ञापन” के अन्तर्गत राष्ट्रीय शर्करा संस्थान कानपुर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर ‘देश में बायो फ्यूल उत्पादन का बेहतर प्रभाव शीलता और दीर्घकालिकता के साथ संवर्धन करने हेतु, उत्कृष्ट अनुसंधान और अत्याधुनिक तकनीकी के विकास तथा उसको आत्मसात करने के लिए संयुक्त परियोजनाओं में कार्य करेंगे’ इस समझौता ज्ञापन के प्रथम चरण में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर से प्रस्ताव लिये जायेंगे अगले चरण में केंद्रीय और राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित संस्थानों, विश्वविद्यालयों और अन्य संगठनों, उद्योगों से भी प्रस्ताव लिये जाएंगे इस सहयोगात्मक अनुसंधान कार्य में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा बायोमास से इथेनाल, मीथेनाल, बायो सीएनजी, एविएशन फ्यूल (विमानीय ईंधन), ग्रीन हाइड्रोजन इत्यादि के उत्पादन को बढ़ाने पर विस्तृत अध्ययन किया जाएगा यह “समझौता ज्ञापन” तीन वर्ष के लिए हस्ताक्षरित है, जिसके पूर्ण होने पर, दोनों संस्थानों की समीक्षा और आपसी सहमति के आधार पर अवधि बढ़ायी जा सकती है प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, निदेशक आईआईटी कानपुर ने बताया कि राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर इस संबध में बाजारगत स्थिति एवं तकनीकी आवश्यकताओं को भली-भांति समझते हुए, इस क्षेत्र में लगभग 60 वर्षों से कार्यरत है इसी प्रकार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के पास रसायन एवं अन्य संबंधित तकनीकी में आधारभूत क्षमता है इसका उद्देश्य जैव ईंधन के क्षेत्र में भारत को नेतृत्व की स्थिति में लाने में सहयोग करने के लिए अत्याधुनिक विशिष्ट केंद्र निर्मित किए जाने हेतु दोनों संस्थाओं की शक्ति को एकीकृत करना है
अश्विनी श्रीवास्तव, संयुक्त सचिव (शर्करा), भारत सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 विभिन्न गन्ना आधारित फीड स्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन के साथ-साथ, इथेनॉल के उत्पादन के लिए अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति देती है पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत, सरकार ने 2025 तक पेट्रोल के साथ इथेनॉल के 20%मिश्रण का लक्ष्य तय किया है गन्ना आधारित फीड-स्टाक की सीमित उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए, देश में इथेनॉल का उत्पादन बढाने के लिए सरकार द्वारा इथेनॉल के उत्पादन के लिए मक्के को एक प्रमुख फीड स्टॉक के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है इथेनॉल के अलावा, गन्ने के अन्य उप उत्पादों जैसे मौलैसेस से प्राप्त पोटाश (पीडीएम) के उर्वरक, संपीड़ित बायो-गैस (सीबीजी) के रूप में प्रयोग के लिए, जिसे हरित नवीकरणीय ऑटोमोटिव ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है, सरकार इनके उपयोग को बढ़ावा देकर वेस्ट से वैल्थ (व्यर्थ से अर्थ) की संकल्पना पर भी ध्यान दे रही है।जैव ईंधन की दीर्घकालिकता को ध्यान में रखते हुए उन पर सरकार का ध्यान केंद्रित करने से न केवल कच्चे तेल के आयात बिल में कटौती करने में मदद मिलेगी बल्कि आयातित जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता भी कम होगी, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य प्राप्त होगा। केंद्र सुरक्षा एवं दीर्घकालिकता सुनिश्चित करते हुए जैव ईंधन नवाचार का समर्थन करेगा उन्होंने दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों के बीच संयुक्त शोध कार्य के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं
प्रोफेसर सीमा परोहा, निदेशक, राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर ने बताया कि सभी आवश्यक उपकरण, पायलट प्लांट और यंत्रों के साथ केन्द्रीय उपकरण की सुविधा से युक्त, एक अत्याधुनिक प्रयोगशाला सहित इस विशिष्ट कार्य के लिए एक समर्पित भवन, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के लिए राष्ट्रीय शर्करा संस्थान परिसर में स्थापित किया जाएगा इसकी कुल लागत राशि मंत्रालय द्वारा प्रदान की जाएगी, जिसके लिए पहले ही मंत्रालय द्वारा प्रशासनिक स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है यह ‘समझौता ज्ञापन’, नवाचारी तकनीकों के विकास, मौजूदा प्रक्रियाओं के अनुकूलन और जैव ईंधन प्रौद्योगिकी की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने हेतु पायलट परियोजनाओं को स्थापित करते हुए उन्नत, दीर्घकालिक और उच्च गुणवत्ता वाले जैव ईधन के उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगा, जो अंततः ऊर्जा आपूर्ति को संरक्षित करने, कार्बन डाइ आक्साइड के अनावश्यक उत्सर्जन को कम करते हुए जलवायु को संरक्षित करने और जैव ईंधन पर निर्भरता, कच्चे तेल के आयात को कम करने में सहायक।