कानपुर भारतीय धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जब-जब अत्याचार बढ़े हैं, नैतिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तथा आसुरी प्रवृत्तियां हावी हुई हैं, तब-तब किसी न किसी रूप में ईश्वर ने अवतार लेकर धर्मपरायण प्रजा की रक्षा की। संपूर्ण विश्व में मात्र भारत को ही यह सौभाग्य एवं गौरव प्राप्त रहा है कि यहां का समाज साधु-संतों के बताए मार्ग पर चलता आया है।
ऐसी ही एक कथा भगवान झूलेलालजी के अवतरण की है। शताब्दियों पूर्व सिन्धु प्रदेश में मिर्ख शाह नाम का एक राजा राज करता था। राजा बहुत दंभी तथा असहिष्णु प्रकृति का था। सदैव अपनी प्रजा पर अत्याचार करता था।
इस राजा के शासनकाल में सांस्कृतिक और जीवन-मूल्यों का कोई महत्व नहीं था। पूरा सिन्धु प्रदेश राजा के अत्याचारों से त्रस्त था। उन्हें कोई ऐसा मार्ग नहीं मिल रहा था जिससे वे इस क्रूर शासक के अत्याचारों से मुक्ति पा सकें।
लोककथाओं में यह बात लंबे समय से प्रचलित है कि मिर्ख शाह के आतंक ने जब जनता को मानसिक यंत्रणा दी तो सिंध की जनता ने ईश्वर की शरण ली। और
सिन्धु नदी के तट पर 40 दिन लगातार ईश्वर का व्रत रख कर स्मरण किया फलस्वरूप श्री वरुण देव उदेरोलाल ने जलपति के रूप में मत्स्य पर सवार होकर दर्शन दिए। तभी आकाशवाणी हुई कि अवतार होगा एवं नसरपुर के ठाकुर भाई रतनराय के घर माता देवकी की कोख से उपजा बालक सभी की मनोकामना पूर्ण करेगा।
समय ने करवट ली और नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने चैत्र शुक्ल 2 संवत् 1007 को बालक को जन्म दिया एवं बालक का नाम उदयचंद रखा गया। इस चमत्कारिक बालक के जन्म का हाल जब मिर्ख शाह को पता चला तो उसने अपना अंत मानकर इस बालक को समाप्त करवाने की योजना बनाई।
बादशाह के सेनापति दल-बल के साथ रतनराय के यहां पहुंचे और बालक के अपहरण का प्रयास किया, लेकिन मिर्ख शाह की फौजी ताकत पंगु हो गई। उन्हें उदेरोलाल सिंहासन पर आसीन दिव्य पुरुष दिखाई दिया। सेनापतियों ने बादशाह को सब हकीकत बयान की।
उदेरोलाल ने किशोर अवस्था में ही अपना चमत्कारी पराक्रम दिखाकर जनता को ढांढस बंधाया और यौवन में प्रवेश करते ही जनता से कहा कि बेखौफ अपना काम करें। उदेरोलाल ने बादशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परम सत्य है। इसे चुनौती मान बादशाह ने उदेरोलाल पर आक्रमण कर दिया।
बादशाह का दर्प चूर-चूर हुआ और पराजय झेलकर उदेरोलाल के चरणों में स्थान मांगा। उदेरोलाल ने सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। इसका असर यह हुआ कि मिर्ख शाह उदयचंद का परम शिष्य बनकर उनके विचारों के प्रचार में जुट गया।
उपासक भगवान झूलेलालजी को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसांईं, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से पूजते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी चैत्र मास के चन्द्रदर्शन के दिन भगवान झूलेलालजी का उत्सव संपूर्ण विश्व में चेटीचंड के त्योहार के रूप में परंपरागत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
चूंकि भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है, इसलिए काष्ठ का एक मंदिर बनाकर उसमें एक लोटी से जल और ज्योति प्रज्वलित की जाती है और इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाकर, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है, भगवान वरुणदेव का स्तुति गान करते हैं एवं समाज का परंपरागत नृत्य छेज करते हैं।
यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है। झूलेलाल उत्सव चेटीचंड, जिसे सिन्धी समाज सिन्धी दिवस के रूप में मनाता चला आ रहा है,।
अतः आगामी 10 अप्रैल दिन बुधवार वरुण देवता भगवान श्री झूले लाल जी का जन्म दिन ( श्री चैट्री चंद) महा महोत्सव के रूप में बहुत ही धूम धाम से मनाया जायेगा। जिसमे कार्य क्रम विवरण निम्नवत हैं:
1. प्रातः 6 बजे श्री झूले लाल जी का अभिषेक व श्रंगार होगा
2. प्रातः 7 बजे पूज्य श्री बहराणा साहिब जी की पूजा व भव्य शोभा यात्रा मन्दिर प्रांगण से प्रारम्भ होकर गोविन्द नगर मैन रोड से सीटीआई होते हुए वापसी मन्दिर प्रांगण में विराम होगा।
3. प्रातः 11 बजे विशाल भंडारा प्रभु इच्छा तक
4. रक्त दान शिविर , मेडिकल चेकअप कैम्प आदि
5. साय 5 बजे पूज्य श्री बहराणा साहिब की स्थापना व पूजा
6. शाम 7 बजे ढोकला नृत्य, महिलाओं व बच्चो की सिंधी गानों, नाटक नृत्य आदि की प्रस्तुति।
7. रात्रि भंडारा
8. रात्रि 11 बजे पूज्य श्री बहराणा साहिब जी का अरमापुर नदी पर विसर्जन।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से
श्याम लाल मूलचंदानी(अध्यक्ष),
बलराम कटारिया, गणेश बजाज पूर्ण बजाज, बंटी सिधवानी, सुरेश कटारिया, पूर्ण बजाज, संजय चुग, लक्ष्मण दास,राजकुमार लालवानी, मनोज तलरेजा, राजकुमार मोटवानी , नरेश फूलवानी,दिनेश कटारिया, हरी राम गंगवानी, सुरेश धमेजा, विनोद मुर्जानी, मुकेश कटारिया, गणेश बजाज,नरेश फूलवानी, बिहारी लाल बजाज , रमेश मुर्जानी, सुनील अलवानी,आदि।