नई दिल्ली, किसी भी राष्ट्र का गौरव केवल उसके पदकों की चमक से नहीं, बल्कि उसकी बेटियों के साहस, विश्वास और अटूट हिम्मत से मापा जाता है। वह दौर अब बीते जमाने की बात हो चुका है, जब लड़कियों को सामाजिक बंदिशों की जंजीरों में जकड़कर घरों की चौखटों में सीमित कर दिया जाता था। आज की भारतीय बेटी अपने सपनों को किसी की दया पर नहीं छोड़ती, बल्कि अपनी मुट्ठी में मजबूती से पकड़कर दुनिया को बताती है कि उसकी उड़ान अब किसी रोक-टोक से नहीं, बल्कि उसके जज़्बे और जुनून से लिखी जाती है। इसी नए भारत की वही प्रखर आवाज़ बनी हैं वंदना ठाकुर, जो इंडोनेशिया से स्वर्णिम पदक जीतकर लौटी हैं—सिर्फ एक मेडल नहीं, बल्कि यह संदेश लेकर कि जब भारत की बेटियाँ तय कर लें, तो इतिहास खुद उनके रास्ते में सिर झुकाकर खड़ा हो जाता है।
11 से 17 नवंबर 2025 तक इंडोनेशिया के रियाउ प्रांत स्थित बाटम शहर में आयोजित 16वीं वर्ल्ड बॉडीबिल्डिंग एंड फ़िजिक स्पोर्ट्स चैंपियनशिप में वंदना ठाकुर ने वह हासिल किया, जिसे पाने का सपना भी असाधारण साहस की माँग करता है। विश्वभर के दिग्गज और अनुभवी बॉडीबिल्डर्स के बीच भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए वंदना ने न केवल प्रतियोगिता जीती, बल्कि करोड़ों देशवासियों की उम्मीदों को अपने कंधों पर उठाकर उसे स्वर्णिम मुकाम तक पहुँचाया।
जैसी उनकी जीत थी, उससे कहीं ज्यादा कठिन था उसका सफर। वंदना का हर कदम संघर्षों, चुनौतियों और तपस्या से भरा रहा। पर उनके मन में एक ही मंत्र था—“रार नहीं ठानूँगी, हार नहीं मानूँगी।”
सुबह का अंधेरा मिटने से पहले उठ जाना, घंटों की कठोर ट्रेनिंग, दर्द और चोटों से लड़ते हुए भी मुस्कुराते रहना—वंदना की यह यात्रा ही उन्हें आज भारत की ‘स्वर्णिम बेटी’ बनाती है। यह विजय केवल उनके सशक्त शरीर की नहीं, बल्कि उनके अदम्य साहस, लोहे जैसे अनुशासन और देश के प्रति अथाह प्रेम की जीत है।
अपनी ऐतिहासिक जीत पर भावुक वंदना ठाकुर ने कहा—
“जब मैं मंच पर उतरी, तो मन में सिर्फ एक ही भाव था—तिरंगा जीतकर ही लौटना है। इस मंच पर भारत का झंडा लहराए, यही मेरा लक्ष्य था। इसके लिए चाहे जितनी मेहनत करनी पड़ी, मैंने बिना किसी डर के सब स्वीकार किया। महीनों पहले से ही मैंने गोल्ड जीतने का व्रत ले लिया था। मैं देश की हर महिला और हर बच्ची से यही कहना चाहूँगी कि अगर मन में चाह हो, तो अपने सपने पूरा करने की ज़िद पर अड़ जाओ—फिर जीत तुम्हारे कदम चूमेगी। यह गोल्ड मैडल सिर्फ मेरा नहीं, बल्कि हर उस महिला का है जिसे कभी कहा गया कि वह कुछ नहीं कर सकती, लेकिन उसने समय को गलत साबित कर दिखाया। मैं चाहती हूँ कि यह मेडल भारत की बेटियों के सपनों में सुनहरी चमक भर दे और उन्हें सबसे आगे खड़े होकर दुनिया को दिखाने की प्रेरणा दे।”