तीन दिन की नोटिस, आठ दिन की चुप्पी — कहीं अंदरखाने ‘चाय पर चर्चा’ तो नहीं हुई?
मनीष गुप्ता, कानपुर।
बिधनू सीएचसी का ₹25,000 वसूली कांड अब और दिलचस्प मोड़ ले चुका है —
अब इसमें सामने आया है एक “गुमराह करने का खेल”, जहां
वसूली किसी से हुई, लेकिन नोटिस में नाम किसी और का डाल दिया गया!
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⚠️ गुमराह करने की नई चाल!
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक,
बिधनू सीएचसी अधीक्षक ने कथित रूप से वसूली एक डॉक्टर से की,
लेकिन नोटिस की पूर्ति के लिए किसी दूसरे झोलाछाप डॉक्टर का नाम डालकर
एडिशनल सीएमओ डॉ. यू. बी. सिंह को गुमराह कर दिया।
यानी,
“क्लिनिक सीलिंग” की कहानी को “कागज की सीलिंग” में बदल दिया गया।
रिपोर्ट में नाम बदले गए ताकि
फाइल पर कार्रवाई की औपचारिकता पूरी दिखे —
पर असली पात्र अब भी ‘फ्रेम से बाहर’ हैं!
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⏳ तीन दिन की नोटिस, आठ दिन की खामोशी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय ने इस वसूली प्रकरण पर संज्ञान लेते हुए
संबंधित अधिकारियों को तीन दिन में स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया था।
लेकिन जब पत्रकार ने अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. यू. बी. सिंह से बात की,
तो उन्होंने कहा —
बिधनू सीएचसी अधिकारी ने 7 दिन का समय मांगा था।”
अब आठ दिन बीत चुके हैं —
न जवाब आया, न कार्रवाई!
ऐसे में सवाल उठ रहा है —
क्या तीन दिन की सख्ती, सात दिन में नरमी और आठवें दिन में समझौता बन गई?” 😏
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🗂️ जवाब गायब, जुगाड़ हाज़िर!
विभागीय सूत्रों का दावा है कि
जिन पर जांच होनी थी, वे अब “संपर्क से बाहर” हैं,
और जिनसे पूछताछ की जानी थी, वे “मीटिंग में व्यस्त” बताए जा रहे हैं।
फाइलें अब “सील” नहीं, “ठंडी” कर दी गई हैं।
अंदरखाने में चर्चाएँ तेज़ हैं —
डील हो गई है… सब कुछ गुपचुप तरीके से निपट गया।”
📄 अब जनता का सवाल —
अगर वसूली नहीं हुई, तो जवाब क्यों नहीं दिया गया?
और अगर सब कुछ सही है, तो फाइलें ठंडी क्यों पड़ी हैं?
नोटिस में नाम बदलने की नौटंकी आखिर किसके इशारे पर हुई?
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अब स्वास्थ्य विभाग के गलियारों में कानाफूसी शुरू है —
“जवाब बाद में आएगा, लेकिन जुगाड़ पहले ही हो गया!”
और लोग मज़ाक में कह रहे हैं —
तीन दिन का नोटिस तो बस औपचारिकता थी,
बाकी सब काम ‘सम्मान के भाव’ में निपट गया!” ☕😉