कानपुर-प्रशासनिक गलियारों में अक्सर यह प्रश्न गूंजता है कि एक अधिकारी कैसा होना चाहिए? इसका जीवंत उदाहरण आरटीओ में उस समय मिला जब आरआई से पदोन्नत होकर एआरटीओ बनीं आकांक्षा सिंह ने अपने पहले ही दिन कार्यालय को मानो एक नई ऊर्जा और संवेदना से प्रकाशित कर दिया हो कार्यालय में प्रातःकाल से ही बधाइयों और पुष्पगुच्छों का अंबार लगा रहा, मानो आरटीओ परिसर किसी शुभ वेला में आशीर्वादों का कुंभ बन गया हो किंतु, इसी बीच आकांक्षा सिंह एवं आरआई संतोष कुमार के साथ कार्यालय संबंधी किसी बैठक मे जा ही रही थी कि तभी दोनों अधिकारियों की दृष्टि एक विवश दिव्यांग मोहम्मद हसीन निवासी डिप्टी का पड़ाव पर पड़ी तो संवेदनशीलता ने औपचारिकताओं को परे धकेल दिया उन्होंने समस्या पूछी, और तत्काल समाधान करा दिया बिना किसी औपचारिक फाइल-दर्शन, बिना किसी ‘कल आइए’ की रटी-रटाई सरकारी शैली दिव्यांग नागरिक की आंखों से छलकते आशीर्वाद ने मानो यह उद्घोष कर दिया कि अगर अधिकारी में संवेदना हो, तो जनता का विश्वास अपने आप उमड़ पड़ता है यही वह क्षण था जिसने यह साबित किया कि कुर्सी सिर्फ अधिकार का प्रतीक नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का सिंहासन भी है सच कहें तो, आकांक्षा सिंह का यह पहला दिन एक शुभारंभ ही नहीं, बल्कि एक पाठ भी है कि जनता के दिल में जगह बनाना बड़े-बड़े भाषणों से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे संवेदनशील कार्यों से संभव होता है कहावत है “रोते को हंसाना ही सच्ची नेकी है” और आकांक्षा सिंह ने अपने आचरण से इस सूक्ति को साकार कर दिया आरटीओ की दीवारें आज मानो यह फुसफुसा रही थीं कि अगर अधिकारी आकांक्षा सिंह जैसी हों तो जनता को न तो दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ें और न ही शिकायतों की पोटली ढोनी पड़े।
कुर्सी को बनाया जिम्मेदारी का सिंहासन, दिव्यांग की सेवा में आगे आईं एआरटीओ आकांक्षा सिंह
